Sunday, October 19, 2014

Modi's chakrvyuh for congress... Hat's off...

मेरी यह पोस्ट सम्पूर्ण तौर पर मेरे खुद के विचार है। और इसके लिए कोई भी आधार कही से लिया नहीं गया है। जो राजनैतिक घटनाए इन दिनों घट रही है उसके ही आधार पर यह लिख रहा हु। 

नरेन्द्र मोदी जब अक्टूबर २००१ में गुजरात की बागडोर बतौर मुख्यमंत्री संभाली, तब शायद ही गुजरात की जनता उनको जानती थी। हांलाकि मोदी १९९५ से १९९८ के चुनाव में गुजरात में भाजपा की रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभा चुके थे। मोदी को गुजरात में भेजा गया तब भाजपा के पास कोई खास विज़न नहीं था।  उस समय मोदी एक पूरा विज़न लेके गुजरात आये थे।  वो विज़न था गुजरात से कांग्रेस का सफाया। 2002 में हुए चुनावो के समय से ही मोदी एक सोची समजी रणनीति के अंतर्गत चले।  

२०११ में उनकी रणनीति को उन्होंने उजागर किया, जब महानगर पालिकाओ के चुनाव में भाजपा को "न भूतो न भविष्यति" विजय मिला। मोदी ने भाजपा कार्यालय के बहार विशाल जनमेदनी को संबोधित करते हुए कहा था की, " मैं भारत में से वोटबेंक की राजनिति को ख़त्म कर दूंगा। " मोदी ने २०११ में ही सद्भावना मिशन को अंजाम देकर इस बात का आगाज़ कर दिया था। और इस बात का अंजाम मोदी ने २०१२ के विधानसभा चुनावो में अपने कथन को सत्य भी साबित कर दिया। उन्होंने कोई धर्मविशेष की बात न करते हुए विकास के मुद्दे पर गुजरात का चुनाव प्रचार किया और शानदार जीत भी हासिल की।


२०१४ में हुए लोकसभा चुनाव के समय भी किसी धर्म आधारित राजनीति को बाजु में करते हुए उन्होंने विकास मॉडल पर प्रचार किया।  उन्होंने पुरे देश में एक लहर पैदा कर दी। और नतीजा आप सब के सामने है। 

अब बात करे यहाँ की हर बार कांग्रेस मोदी के व्यूह में फंस जाती है। 
२००७ के चुनाव में कांग्रेस ने "गोधराकांड" को मुद्दा बनाया। वही मोदी ने कही भी इस बात का कोई उल्लेख तक नहीं किया था। वही सोनिया गांधी ने मोदी को " मौत का सौदागर " कह कर पुकारा। जिसपर गुजरात की जनता ने अपना रिकॉर्डतोड़ वोट देकर मोदी को विजेता बनाकर दिया। 

महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना से युति तोड़ी। इस पर मिडिया में बहोत बवाल हुआ। लेकिन किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया की यह एक रणनीति भी हो सकती है। मुझे पूरा भरोसा है की यह मोदी की एक रणनीति ही थी। जिस तरह से गठबंधन तोडा गया और पुरे महाराष्ट्र में जिस तरह से प्रचार हुआ, उस पर से साफ़ हो गया था की यह एक सोची समजी साजिश थी। विरोधियो को मुह तोड़ जवाब देनेवाले मोदी ने शिवसेना के खिलाफ न बोलने का फैसला भी इसी वजह से लिया था। जब की उद्धव और राज ठाकरे के लिए मोदी पर प्रहार करना बेहद जरुरी था। वर्ना तो उनकी गाड़ी चालू ही नहीं होनी थी। इन सब बातो का असर यह हुआ की अब भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनके उभरी है, वही हरियाणा में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया है। 

अभिनंदन मोदी जी। 


Sunday, October 5, 2014

Jawaharlal Nehru : THE LAST MUGHAL [ PART : 2 ]

जवाहरलाल नेहरू : दी लास्ट मुग़ल
जवाहरलाल अपने परिवार के साथ। गौर तालाब है की नेहरू की एक भी फोटो १ से १० साल के बीच की नहीं है। 

पार्ट:१ में किस तरह जवाहरलाल ट्रिनिटी कॉलेज पहुंचे वह तक हम पहुंचे थे। वहा से आगे की दास्ताँ कहानी के इस भाग में पढ़े।

जैसे की हम अब जानते है की जवाहरलाल के ट्रिनिटी कॉलेज का खर्च ओढ़ के नवाब ने उठाया था। तो जाहिर है की वो वह पर किसी नवाबजादे की तरह ही रहे होंगे। ट्रिनिटी कॉलेज से बैरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद वो हिंदुस्तान वापस आये और मुंबई में अपनी वकालत चालू की। लेकिन इससे पहले कुछ घटनाए भारत में घट चुकी थी। कभी वैश्यलय के चौकीदार का काम करने वाले मोतीलाल अब 'इसरत महल' को खरीद कर उसको 'आनंद भवन' में तब्दील कर चुके थे। इन दिनों उनका रसूख और जाहोजलाली भी देखने लायक थी। पर यह यह सब हुआ कैसे?

दरअसल हुआ यह था की, जवाहर के विदेश जाने के कुछ समय बाद  इटावाह के राजा बिना किसी संतान के मृत्यु के शरण हो गए। उनकी विधवा बीवी को यह डर था की ब्रिटिश सरकार उससे लार्ड डेल्हौसी के बनाये गए Doctrine of Lapse कानून के तहत उसकी रियासत छीन लेगी। इस वजह से उसने तब वकालत में बेशुमार शोहरत रखने वाले मुबारक अली और मोतीलाल से मदद मांगी। और उनका केस लड़ने के लिए बतौर फीस के ५,००,००० रुपये भी दिए। लेकिन निचली अदालत में मुबारक अली और मोतीलाल जानबूजकर केस हार गए। और रानी को कहा की हम उच्च न्यायलय में जायेंगे। उच्च न्यायालय में जाने की फीस के तौर पर फिर से ५,००,००० रुपये इटावाह की रानी ने मोतीलाल और मुबारक अली को अदा किये। लेकिन वो केस उच्च न्यायलय में भी हर गए। फिर उन्होंने प्रिवी कौंसिल लंदन में अपील करने के लिए भी रानी को मना लिया। लन्दन में उन्होंने वहा के एक वकील को जो की काफी रसूख रखता था उसे रोका। उसने एक नुस्खा दिया की राजा की मोत के वक़्त वो गर्भवती थी। और उन्होंने उतनी ही आयु के एक बच्चे को रानी की गोद में डाल दिया। यह तरीका प्रिवी कौंसिल में चल गया और वहा पर मोतीलाल और मुबारक अली को जीत मिली। या फिर ऐसा कहे की उस फिरंगी वकील को जीत मिली। इस जीत से खुश होकर रानी ने इटावा का एक क्षेत्र अमेठी मोतीलाल को दिया। जो की आगे चलकर नेहरू परिवार का चुनावी क्षेत्र बनाना था। 


तो नेहरू अपनी पढाई पूरी कर के वापस भारत आते है। और अपने पिता ने कमाई हुई सम्पति और रसूख से मुंबई के मालाबार हिल्स में अपनी वकालत शुरू करते है। जो की ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाई। और एक दिन जवाहरलाल को मुंबई पुलिस पकड़ के ले गई। हुआ यह था की जवाहर को उसकी ही ऑफिस में काम करने वाली एक पारसी युवती को छेड़ने और शारीरिक अत्याचार का मामला दर्ज कराया गया था। जैसे ही मोतीलाल को अपने लाल की करतूत के बारे में पता  चला वो तुरंत अलाहाबाद से मुंबई आये और अपने रसूख का इस्तेमाल करके जवाहर को छुड़ा ले गए।  उसके बाद जवाहर ने अपनी वकालत छोड़ दी और राजनीती में प्रवेश किया। 

राजनीती  प्रवेश के बाद उसके हौसले तब और बुलंद हो गए जब वो गांधी के करीब आ गए।  उन दिनों उनके रिश्ते सरिजानी नायडू की बेटी से रहे थे। जो की आगे चलकर बंगाल की राजयपाल नियुक्त की गई। जवाहर के पि ए. ओ एम मथाई इस बारे में अपनी किताबो में लिखते है की, जवाहर "वुमनाइज़र" थे। प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके ताल्लुकात एडविना माउंटबेटन के साथ थे। और अक्सर वो राजनैतिक मामलो में एडविना की सलाह थे और उन पर अमल भी करते थे। एडविना के जाने ले बाद प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनके कई महिलाओ के साथ ताल्लुकात थे। जिसमे एक हिन्दू सन्यासिन श्रद्धा माता से भी उनके ताल्लुकात थे। १९४९ में श्रद्धा माता ने जवाहर को शादी करने के लिए फ़ोर्स किया। लेकिन जवाहर ने मना कर दिया। बाद में श्रद्धा माता ने एक क्रिस्टियन मोनेस्ट्री में ३१ मई १९४९ में एक बालक को जन्म दिया। इस बारे में जब मथाई को पता चला तो उन्होंने खूब खोज की। लेकिन उन्हें मॉनेटरी वालो ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।  मथाई अपनी बुक में लिखते है की, उन्होंने बहुत बार देर रात को श्रद्धा माता को नहेरु के बंगले से निकलते देखा था। लेकिन यह बात नेहरू के निकट लोगो के लिए सामान्य थी। और यही वजह है की आज़ाद भारत में क्रिस्टियनो को १९५० के बाद इतना प्रोत्साहन मिला और उनका विकास हुआ जितना अंग्रेजो के समय में भी नहीं हो पाया था।  जाहिर है की मोनेस्ट्री वाले नेहरू को ब्लेकमेल कर रहे थे। 
नेहरू और श्रद्धा माता। 

नेहरू की ऐसाशिया यही पर नहीं थमती। इस परिवार में एक से बढ़कर एक खिलाडी मौजूद है। लेकिन उसके लिए मेरे अगले ब्लॉग की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। आपको यह ब्लॉग कैसा लगा कृपया इस बारे में मुझे अपने कॉमेंट्स के जरिये अवगत करिये। और मेरे ब्लॉग को लाइक करे। 


Reference :-
1)  “Reminiscences of the Nehru Age” (ISBN-13: 9780706906219) By M. O. Mathai.
2)  "My day's with Nehru" (ISBN-13: 978-0706908237) By M. O. Mathai.