Wednesday, February 9, 2011

क्या यह सही है?

पिछले दो दिनों से सुर्खीयो में छाई रहने वाली मायावती के जूतों वाली बात ने एक बार फिर से पुलिस को राजकारणीओ का गुलाम साबित किया है| और एक बार फिर से यह सच उजागर हुआ है की, राजकारणी भी अपने सता के मद में कितने मस्त है की अपने कार्य से विमुख तो वे है ही लेकिन साथ में अब दुसरो का मान सन्मान भी भूल गए है| और यह कोई पहला किस्सा नहीं है जहाँ किसी सरकारी अधिकारी ने नेता के लिए स्तर से नीचे गीर कर काम किया हो|  जब नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे तब उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में संजय गाँधी की चप्पल उठाई थी पर जिसने चप्पल उठाई वो राजनीति में उठता ही चला गया| आख़िर १० जनपथ में सभी बड़े से बड़े कांग्रेसी नेता (जिनमे प्रधानमंत्री भी हैं) यही तो करते हैं| अभी थोड़े समय पहले गुजरात के मुख्यामंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा में एक कलेक्टर ने उनके पैर छु कर अपने स्तर को नीचा कीया था|
ऐसे देखने को जाये तो बहुत से किस्से आप की नजर के सामने आयेंगे| लेकिन क्या यही कार्य रह गया है उच्च सरकारी अधिकारियो का, की वो नेताओ के जूते साफ़ करे, या फिर उनके तलुए चाटे| भारत में जहाँ आज भी ७० प्रतिशत लोगो को मुलभुत सुविधाए उपलब्ध नहीं है, जहाँ आज भी ४५ प्रतिशत बच्चे शिक्षा से वंचित है, जहाँ आज भी ३३,००० के करीब गावों में बिजली, पानी और स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध नहीं है, वह क्या राजकारणीओ का और उच्च अधिकारिओ का यह बर्ताव जायज है?
मुझे तो यह सवाल सब से ज्यादा सताता है| आप का इस पर क्या कहना है कृपया मेरे ब्लॉग पर प्रतिभाव देकर मुझे अवगत करे|

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