अल कायदा आफ्टर बिन लादेन...
२०११ से २०१४ तक कैसे कहाँ और क्या किया।
२ मई २०११ को जब
यह समाचार आया की दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी ओसमा बिन लादेन को मार दिया गया है,
तो मानो विश्वने शांति की साँस ली हो। उस समय ऐसा लगने लगा था की अब शायद आतंकवाद
का चहेरा धुंधला पड़ जायेगा। यह तो जाहिर था की, लादेन के बाद अल कायदा की ताकत को
भारी ज़टका लगेगा और शायद इस वजह से अल कायदा फिर कभी सर न उठा पाए. और लगभग हुआ भी
ऐसे ही। करीब करीब २ साल तक अल कायदा की कोई भी गतिविधि देखी नहीं गई। अब माना जा
रहा था की अल कायदा नहीं रहा।
लेकिन २०१३ में
फिर से एक बार अल कायदा परदे पर आया, अपने नए आका के साथ। आयमान अल जवाहरी, जो बिन
लादेन के साथ कई विडिओ में दिखा था स्वाभाविक तौर पे उसने अब अल कायदा की कमान को
संभाला था। जवाहरी पेशे से एक आई सर्जन है, लेकिन लोको के जीवन में उजाला लाने के
बदले उसे अँधेरा फैलाने में ज्यदा मजा आता है। जवाहरी के हाथ में कमान आने के बाद
उसके सामने सामने सब से बड़ी चुनौती यह थी की उसको अल कायदा के पुराने कोंटेक्ट को
जोड़ना था साथ ही साथ उसे ओसामा बिन लादेन की आतंकियो में रही लोकप्रियता और
करिश्मा से भी लड़ना था, अपनी अलग से पहेचान बनानी थी.
मई २०१३ में ही
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा की अल कायदा बस
अब हार की कगार पर है। लेकिन ३ महीने बाद ही अमेरिकाकी सिक्युरिटी एजेंसी ने मिडल
ईस्ट में नए अल कायदा चीफ जवाहरी और यमन के अल कायदा चीफ नासिर अल हुवैशी के बिच
की बातचीत को इंटरसेप्ट किया। जिसके चलते अमेरिका ने मिडल ईस्ट में अपने १९
दूतावासों को बंध करने पड़े। इस तरह से मिडल ईस्ट में अल कायदा फिर से फलक पर दिखाई
दिया। लेकिन यह तो अल कायदा की एक मात्र जलक देखने को मिली थी। जवाहरी और हुवैशी
की बातचीत को इंटरसेप्ट करने पर अमेरिका को यह लगा की जवाहरी में लादेन जितनी
काबलियत नहीं है।
हांलाकि ओसामा
बिन लादेन के मरने के बाद अल कायदा आतंकी ओ की दुनिया में अपनी साख खो चूका था, लेकिन इसके वफादारो की आज भी उनको कोई कमी नहीं थी। जिहाद के नाम पर आतंक फ़ैलाने
वाले ये कट्टर आतंक के सौदागर फिर से एक बार दुनिया को हिलाने को तैयार थे। दूसरी
तरफ जवाहरी को भी लादेन के बाद अपनी साख कायम करनी थी। भले ही अमेरिका ने जवाहरी
और हुवैशी की बातचीत को इंटरसेप्ट किया हो और कोई बड़ी घटना को अंजाम देने से इन
दोनों को रोका हो, लेकिन फिर भी अमेरिका जवाहरी को ट्रेस नहीं कर सका। एक बार फिर
जवाहरी हवा हो गया.
बिन लादेन और जवाहरी में सबसे बड़ा फर्क यह है की ओसामा बिन लादेन अपने संदेशो
को किसी मीडिएटर के जरिये दुनिया में जरी करता था। लेकिन जवाहरी ने रियल टाइम में
हुवैसी से बातचीत की जिससे तुरंत इन दोनों की बातचीत नजर में आ गई। लेकिन जवाहरी
यह जनता था की भले ही लादेन कोई पुराणी बात नहीं हो गई फिर भी उसके तरीके अब
पुराने हो चले है। कोम्युनिकेशन के ज़माने में जो ज्यादा दीखता है वही ज्यादा बिकता
है। इसीलिए उसने रियल टाइम कन्वर्ज़ेशन को अपनी मौजूदगी जताने के लिए पसंद किया। लेकिन इसके बाद फिर लगभग एक साल तक अल कायदा खामोश रहा। भले ही अल कायदा ने मिडल
ईस्ट में हो रहे बदलाव में बहोत अहम् भूमिका निभाई थी। पता नहीं क्यों लेकिन मिडल
इस्ट में हो रही राजकीय बदलाव की गतिविधियो में विश्लेषको को आतंकी संगठनो का कोई
हाथ क्यों नज़र नहीं आया। पर यह बिलकुल साफ है की आतंकी भी समय के साथ अपने तौर
तरीके बदल रहे है। और अल कायदा के नए आका इन बदलाव को भारत में अपनाने की कोशिश कर
रहे है।
भारत में अल कायदा अपनी ब्रांच खोलने की बात कर रहा है, इसके क्या परिणाम होंगे? क्या अल कायदा भारत में पैर पसारने में कामयाब होगा? इस बारे में मेरा अगला ब्लॉग बहोत जल्द लिखूंगा... इस ब्लॉग को जरुर पढ़े और अपना फीडबेक दे..
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